इस ब्लॉग को लिखने का मेरा एकमात्र मकसद आप लोगों को मेरी रचऩाओ से प्रभावित कर कुछ समझाना है, चूंकि और कोई अच्छा गुण हमारे में नहीं है जिसको हम समाज में सरेआम उजागर कर सकें, इससे इक संदेश मिला करेगा सभी को पर इस बात का हमें बहुत खेद है कि हमें कोई ग़ज़ल लिखनी नहीं आती, इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार अविनाश यादव के पास सुरक्षित हैं। अविनाश यादव की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
Dec 21, 2012
Aisa Kab Tak Chalega Ish Desh Me
A Poem on the
behalf of all the women and girls on
the matter of their security in the
society-
रात तो छोड़ो दिन में भी..
चलने से डर लगता है..
जंगलियों के इस समाज में बाहर..
निकलने से डर लगता है..
कहने को पूजते नारी यहाँ..
लक्ष्मी, दुर्गा के रूप में हैं..
पर एक भी नारी सुरक्षित यहाँ..
न तो रात के अँधेरे में है..न ही दिन
की धूप में है..
बस नाम के आज़ाद इस देश में..
हमें तो पैदा हो कर पलने से डर
लगता है..
जंगलियों के इस समाज में बाहर..
निकलने से डर लगता है..
वेह्शी- बुरी नज़रें ले कर..
घूमते यहाँ दरिन्दे हैं..
जो कहने को इंसान हैं पर..
जानवरों के जैसे ज़िंदे हैं..
हवस से भरी नज़रों से बच-बच के..
चलने से डर लगता है..
जंगलियों के इस समाज में बाहर..
निकलने से डर लगता है..
ज़मीर जिनके मर चुके हैं..
उन हैवानों की ये बस्ती है..
जान से प्यारी अनमोल इज्ज़त..
उनकी नज़र में बड़ी ही सस्ती है..
आप सभी का साथ चाहिए..
अकेले अपने दम पे सब कुछ..
बदलने से डर लगता है..
जंगलियों के इस समाज में बाहर..
निकलने से डर लगता है..
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