Dec 21, 2012

Aisa Kab Tak Chalega Ish Desh Me

A Poem on the behalf of all the women and girls on the matter of their security in the society- रात तो छोड़ो दिन में भी.. चलने से डर लगता है.. जंगलियों के इस समाज में बाहर.. निकलने से डर लगता है.. कहने को पूजते नारी यहाँ.. लक्ष्मी, दुर्गा के रूप में हैं.. पर एक भी नारी सुरक्षित यहाँ.. न तो रात के अँधेरे में है..न ही दिन की धूप में है.. बस नाम के आज़ाद इस देश में.. हमें तो पैदा हो कर पलने से डर लगता है.. जंगलियों के इस समाज में बाहर.. निकलने से डर लगता है.. वेह्शी- बुरी नज़रें ले कर.. घूमते यहाँ दरिन्दे हैं.. जो कहने को इंसान हैं पर.. जानवरों के जैसे ज़िंदे हैं.. हवस से भरी नज़रों से बच-बच के.. चलने से डर लगता है.. जंगलियों के इस समाज में बाहर.. निकलने से डर लगता है.. ज़मीर जिनके मर चुके हैं.. उन हैवानों की ये बस्ती है.. जान से प्यारी अनमोल इज्ज़त.. उनकी नज़र में बड़ी ही सस्ती है.. आप सभी का साथ चाहिए.. अकेले अपने दम पे सब कुछ.. बदलने से डर लगता है.. जंगलियों के इस समाज में बाहर.. निकलने से डर लगता है..

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